Tuesday, April 5, 2011

ख़ुशी की तलाश...


चल पड़े हैं एक राह पर सब,
लक्ष्य का न किसी को ज्ञान है.
ज़िन्दगी के दौर में,
कुछ पाने का बस ध्यान है.

दौड़-दौड़ कर थके,
ख़ुशी का न नमो-निशान है.
बस दुःख मिले जीवन में मुझे,
प्रभू, ये कैसा इम्तेहान है.

कुछ प्रश्न हैं दिल में दबे-
दुनिया में इतने गम क्यूँ ?
सब कुछ है पास फिर भी,
सबकी आँखें हैं नम क्यूँ ?

रे मुर्ख! जो मिला तुझे,
उसमे तू ना संतुष्ट है.
तेरी इच्छाओं का ना अंत है,
क्यूँ दुनिया से तू रुष्ट है.

जीवन के भाव को समझ,
नही तो जीना व्यर्थ है.
जो पूरी ना हुई कभी,
उन सपनो का क्या अर्थ है ?

कर्म से भागते रहे,
बस फल की कामना किया.
जो इच्छापूर्ति ना हुई तो,
जीवन में बस दुःख मिला.

ये इच्छाएँ दुःख के मूल हैं,
उन्हें मन से निकाल कर तू फेक.
जितना मिला ईश्वर से तुझे,
उसमे ख़ुशी तलाश कर तू देख.

पिता के डाट में ख़ुशी,
माँ के दुलार में ख़ुशी.
गर जियेगा सबको साथ ले,
दुनिया में तुझसा ना कोई सुखी.

कुछ सवालों के जवाब ढूंढ,
मनुष्य जीवन क्यूँ मिला ?
यूँही वृथा जिए, वृथा मरे,
तो रह जायेगा खुद से गिला.

बटोर ले जो हो सके,
बिखरे पड़े ख़ुशी के पल.
तू आज में जी भर के जी,
किसे पता क्या होगा कल.

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