Saturday, April 9, 2011

तू एक परी है........



महफ़िल में थी,
बहुत सी हसी,
न जाने क्यूँ फिर,
नज़र तुझ पर ही रुकी.

दीवाना हो गया मैं,
सुध-बुध खो गया.
जब धीरे से,
तेरी पलकें झुकी.

इन आँखों से नींद
गायब न होती,
गर तुने नज़रें झुका कर,
फिर से मिलायी न होती.

हम बिन पिए,
ही मदहोश न होते.
गर तू शरमाकर,
मुस्कुरायी न होती.

तेरे कंगने की खनक ने,
किया मेरे दिल को घायल.
एक दर्द सा जगाती है,
तेरी काली आँखों का काजल.

एक आहट से तेरी,
धड़कने बढ़ जाती है.
तू होती है करीब तो,
खुद को भूल जाते हैं.

डर लगता है कहीं,
तू जन्नत की कोई नूर तो नही.
तेरे हुस्न के आगे,
इस ज़मी पर कोई हूर तो नही.

तू आसमा से उतरी एक परी है,
तुझे चाहना मेरी गुस्ताखी है.
जिंदा रहने के लिए प्यार नहीं,
बस तेरी एक झलक ही काफी है.

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