Sunday, November 18, 2012

एक_अधूरी_ मुलाकात।




तेरा  यूँ  मेरे  ख्यालों  में  आना।
दूर  से  ही  मुझे  देख  मुस्कुराना।
नज़रें  मिलने  पे  फिर  पलकें  झुकाना।
बड़ा  पसंद  आया  हमें,
ये  तेरा  मुझसे  मिलने  का  बहाना।

वो  तेरा  मासूम  सा  चेहरा,
निगाहों  को  कैद  कर  लेती  है।
हया  से  तेरे  होंठ  तब  जो  हिलते  हैं,
वो  मेरे  होश  उड़ा  देती  है।

तुझे  भी  शायद  कुछ  कहना  है  मुझसे,
न  जाने  क्यूँ  कहने  से  फिर  डरती  है।
तू  कितनी  भी  कोशिश  कर ले  छिपाने  की,
हमे  मालूम  है  तू  भी  मोहब्बत  करती  है।

फिर  अचानक  से  मुड़कर  तू  जाने  लगती  है,
मेरे  पुकारने  पर  वापस  ठहरती  है।
शरमाते  हुए  तब  पीछे  पलट कर,
दबे  पांव  से, सर झुकाए, मेरी ओर  बढती  है।

तेरे  हर  बढ़ते  कदम  के  साथ,
मेरी  धडकनें  बढ़ने  लगती  है।
मन  में  कई  ख्याल  कौंध  जाते  हैं,
तू  इस  कदर  मेरे  पास  आती है

मैं तुझे  छूने  को  हाथ  बढ़ता  हूँ,
की तभी , पता  नही क्यूँ,
ये  नींद  खुल  जाती  है।
और  ये  मुलाकात ,
फिर  अधूरी  ही  रह  जाती  है।


Thursday, November 15, 2012

बचपन.....



कितनी  उलझनों  में  आज  घिरा  है  मन,
काश  इन  चिंताओं  को  हम  भुला  पाते।
कभी-कभी  सोचता  है  ये  परेशान  दिल,
काश  वो  बचपन  के  दिन  फिर  लौट  आते।

छोटी-छोटी  खुशियाँ  समेटते,
हर  गम  से  कहीं  दूर  भाग  जाते।
और  नादानियों  की  आड़  में,
वही  गलतियाँ  बार-बार  दोहराते।

उन्ही  सुनी  गलियों  में  कभी,
खिलखिलाहटें  गूंजा  करती  थी
और  आसमान  को  छू  लेने  को,
रंग-बिरंगी पतंगें  उड़ा  करती  थी।


लहरों  से  लड़ने  को  तैयार,
बारिश  में  कागज  की  कश्ती  थी।
बूढी  नानी  की  कहानियों  में,
शरारती  परियों  की  मस्ती  थी।

जी  भर  कर  जीते  थे  हर  पल,
कुछ  ऐसा  वो  ज़माना  था।
थोड़े  की  चाहत  थी, छोटे  से  सपने  थे।
 ख़ुशी  का  न  कोई  पैमाना  था।


अक्सर  याद  आते  हैं  वो  दिन,
जब  आंसुओं  के  संग  हर  गम  बह  निकलते  थे।
बड़े  हुए  तो  आँखें  बंज़र  कर  ली,
अब  गमो  को  संजोये, मन  ही  मन  सिसकते  हैं।

दिल  में  अहम्  और  ईर्ष्या  लिए,
दोस्तों  तक  से  दूर  होते  हैं।
वो  दिन  थे  कोई  और  जब  झगड़  कर,
अगले  ही  दिन  फिर  साथ  खेला  करते  थे।

आँखें  झपकने  लगती  थी  कभी,
हर  दिन  शाम  ढलते-ढलते,
रातें  गुजर  जाती  हैं  अब,
यूँही  करवटें  बदलते-बदलते।

नासमझ  थे  तब  हम  छोटे  थे,
जब  दूध  तक  कड़वी  लगती  थी।
कब-कैसे  फिर  इतने  समझदार  हुए ?
की  wishky  भी  मीठी  लगने  लगी।

बड़ा  होना  अगर  ऐसा  था  तो,
काश  हम  बच्चे  रह  जाते।
मन  में  यूँ  दबे  जज़्बात  न  होते,
दिल  की  बात  सबसे  कह  पाते।




Wednesday, October 10, 2012

डर_लगता_है.......


कहते  हैं , "जो  डरते  हैं  वो  प्यार  नही  करते ",
पर मैं  तो  तुझसे  इतनी  मोहब्बत  करता  हूँ .
फिर  क्यूँ  है  ऐसा  की ,
हर  पल , हर  एक  बात  से  मैं  डरता  हूँ .

डरता  हूँ  मैं  तन्हाई  से ,
की  खुद  को  ढूँढू  या  तुझ  को  पाऊं .
डरता  हूँ  दुनिया  की  भीड़  से ,
कहीं  बिन  तेरे  इसमें  गुम  न  जाऊं .

डरता  हूँ  तुझसे  दूर  रहने  से ,
की  अब  और  तनहा  मैं  रह  न  पाऊँ .
डरता  हूँ  तेरे  करीब  आने  से ,
कहीं  जज्बातों  के  भवर  में  बह  न  जाऊं .

डरता  हूँ  तुझे  छूने  से ,
कहीं  छुईमुई  सी  तू  सिकुर  न  जाए.
डरता  हूँ  तुझे  गले  लगाने  से ,
कहीं  इन  बाहों  में  तू  बिखर  न  जाए .

डरता  हूँ  इस  रात  की  चाँदनी  से,
की  ये  तेरे  ख्वाबों  के  संग  ढल  न  जाए.
डरता  हूँ  सुबह  की  किरणों  से ,
कहीं  उजालों  की  चमक  में  तू  बदल  न  जाए.

डरता  हूँ  मैं  इज़हार  करने  से,
कहीं  तुझे  सदा  के  लिए  खो  न  दूँ.
डरता  हूँ  चुप  भी  रहने  से,
की  फिर  दिल  की  बातें  किससे  मैं  कहूँ.

डरता  हूँ  मैं  तेरी  बातों  से ,
की  उनमे  किसी  ग़ैर  का  कभी  जिक्र  न  हो.
डरता  हूँ  तेरी  ख़ामोशी  से ,
कहीं  ऐसा  तो  नहीं  तुझे  मेरी  फ़िक्र  न  हो.

और  डर  लगता  है  ये  सोच  कर  हर  पल ,
की  क्या  गर  तुझे  कभी  पा  न  सकूँ.
उस  खुदा  से  यही  दुआ  होगी  मेरी ,
आखिरी  सांस  तक  तुझी  से  मैं  प्यार  करूँ.



Saturday, September 29, 2012

यूँही_राहों_में.......





इतने  दिनों  बाद  आज  यूँही ,
राहों  में  उनसे  मुलाकात  हो  गयी.
वही  मासूम  चेहरा,  शरारती  निगाहें,
उनकी  यादों  की  जैसे  बरसात  हो  गयी.


कदम  रुके  नही , की  उनकी  ओर  चल  पड़े ,
लब  चुप  रहे  की  मेरे  होश  खो  गए.
उसने  मुंह   फेर  लिया  तब , रास्ते  बदल  लिए ,
यकीन  नही  होता  की  हम  अजनबी  हो  गए.

हमने  सोचा  था ,
उसे  भी  अक्सर  मेरी  याद  आती  होगी ,
फिर  मुझे  सोच,
अकेले  में  वो  भी  मुस्कुराती  होगी.

हम  नादान  थे  जो  इस  दिल  को , 
उनकी  मोहब्बत  के  काबिल  समझ  बैठे.
जिसका  वजूद  न  था  उनकी  नज़रों  में ,
उस  नाम  को  उनके  अपनों  में  शामिल  समझ  बैठे.

कसूर  उनका  नहीं , हमारा  है .
जो  उनसे  इतनी  मोहब्बत  की  थी .  
जलना  तो  किस्मत  में  थी  ही  मेरी ,
जब  शम्मे  की  चाहत  की  थी .

बस  इतनी  शिकायत  है  उस  रब  से ,
की  फिर  से  यूँ  दिल  दुखाया  क्यूँ  ?
जब  मंजिलें  अलग  बनानी  ही  थी,
तो  फिर  रास्तों  को  यूँ  मिलाया  क्यूँ.......?

तो  फिर  रास्तों  को  यूँ  मिलाया  क्यूँ.......??


Tuesday, June 5, 2012

यादें...



लम्हों  के दरमियाँ  हमने,
कुछ  पल  संजोये  रखा है.
कुछ  भूली-बिसरी  यादें हैं,
जिन्हें  दिल से लगाये रखा है.

इन्ही  यादों  के  सहारे  अकसर,
पीछे  मुड़कर  देखा  करते  हैं.
एक  हलकी  सी  मुस्कान  बिखर  आती  है,
कभी अश्क  भी  निकलते  हैं.

याद  आती  है  उनसे वो पहली मुलाकात अपनी,
की  इन आँखों  को फिर  कोई  भायी  न कभी.
नहीं  भूला  है  दिल वो अनकही  बातें,
जो  कभी  जुबान पर लायी न गयी.

ये  वो  पल  थे जो  हमने,
खो  दिए  दिल  की  हिचकिचाहटओं  में.
खैर  कुछ  यादें  ऐसी  भी  हैं  दिल में,
जो  घिरी  हैं  मुस्कुराहटों  में.

वो शरारत  भरी बचपन की यादें,
ठहाको  से  घिरी  यारों  की  बातें.
जी  लेने  को  फिर  करता  है  दिल,
वो  मस्ती  में  भीगी  कॉलेज  की  रातें.

सोचते  हैं  अगर  ये  पल  न  होते,
तो  क्या  हमारी  ज़िन्दगी  होती.
न  बीते  दिनों  के  ख्वाब  होते,
ना  ही  कोई  यादें  होती.

इसीलिए  हर  लम्हा  जी भर  के  जियो  यारों,
की  फिर  ये  पल  लौटकर  आयेंगे  नहीं.
खुशियाँ  बिखेर  दे  हर  ओर,
जब  भी  याद  बनकर  आयें  कभी.


Sunday, May 6, 2012

निराशा



सोचता हूँ कभी-कभी,
क्या मिला इस जहाँ से ?
भटक चुका बहुत मैं,
अब किधर जाऊं यहाँ से ?

कैसी उलझन में फंसा है मन,
कदम बढ़ने से हिचकता हूँ.
दुनिया हँसेगी मेरे आंसुओं पे,
इसलिए मन ही मन सिसकता हूँ.

निराशा के भवर में घिरा,
तनहा सफ़र पे मैं चलता रहा.
मंजिल के करीब पहुचकर भी,
गिरता रहा, संभलता रहा.

हर ख्वाब इन आँखों से,
अश्कों के संग बहते गए.
"जो होता है, अच्छे के लिए होता है."
यही सोच सब सहते गए.

उजालों से दुश्मनी नहीं थी मेरी,
पर अब अंधेरों से दोस्ती की है.
मुझे नादान न समझना यारों,
मैंने भी थोड़ी ज़िन्दगी जी है.

मैंने भी थोड़ी ज़िन्दगी जी है.....

Wednesday, May 2, 2012

कशिश_दिल_की.....


कुछ   ख्वाब  हैं  मेरे पलकों पे सजे,
तुझे अपने  ख्वाब  दिखाऊँ  कैसे?
लब   खुलते नही तेरे आगे,
आँखों से दिल की  बात   बताऊँ  कैसे?

मैं नादाँ, मुझे आशिकी नही आती,
तुझ पर अपनी मोहब्बत  जताऊँ  कैसे?
इज़हार करू पर डरता हु तुझे खोने से,
मैं दिल की बात जुबां पे लाऊं कैसे?

यादें तेरी तड़पाती है मुझे तन्हाई  में ,
मैं अपने अश्क सब  से  छुपाऊँ कैसे?
मेरे हाल  पे  कई   सवाल  हैं  उठे,
तेरे  साथ   बिना सबको समझाऊँ कैसे?

डर लगता है तेरी ख़ामोशी से,
यूँ इंतज़ार में जीए जाऊं कैसे?
इंसा नही, खुदा है तू मेरे लिए,
फिर तुझे दिल से भुलाऊँ कैसे?

Saturday, March 17, 2012

ज़िन्दगी_में_कभी-कभी...




ज़िन्दगी लेती रहेगी,
यूँही इम्तेहान  तेरा,
की मोर पे लाकर,
पूछेगी मक़ाम  तेरा.

चाहत होगी तेरी,
बहुत कुछ  पाने की.
कमियाबियों की ऊँचाइयों,
तक  जाने की.

पर होगा वही,
जो इसने सोचा है.
तू बदल  सकता  नही उसे,
जो तेरे हाथों की रेखा है.

जिनके साथ की उम्मीद है तुझे,
वो भी तब हाथ  छुड़ा  जायेंगे.
दुश्मनो की चोट तो सह ले फिर भी, पर क्या,
गर दोस्त ही इस  कदर  दिल दुखायेंगे.

बहुत पल  आयेंगे  ऐसे,
जब तू इस भीड़ में अकेला होगा.
मत  डरना  उन  अंधेरों  से तब,
की फिर जल्द ही सवेरा होगा.

हर दर्द  मुस्कुरा  कर सहना सीख ले अब,
खुदा से कितनी मर्तबा लड़ेगा तू ?
ख़ुशी की तलाश  में  गम  मिलेंगे  यूँही,
फिर कब  तलक   जीने से यूँ डरेगा तू ?

कुछ अस्क बहने दे तन्हाई में अब,
की कहीं ये चक्ष  न  बंजर  हो जाएँ.
दुःख  में  ही सही, तलाश कर तो देख,
कहीं एक ख़ुशी  का मंजर  मिल  जाये...

कहीं एक ख़ुशी  का मंजर  मिल  जाये...

Tuesday, January 10, 2012

तुझे कैसे बताऊँ जाना.....



क्या तुझे पता है जाना ??

कोई है जिसे जान  से  ज्यादा,
मोहब्बत  है  तुझसे.
कोई है जिसे बेपनाह,
चाहत  है  तुझसे.

किसी की ज़रूरत  है  तू.
किसी की ज़िन्दगी है तुझसे.
कोई रोता है तन्हाई में,
किसी की हर ख़ुशी है तुझसे.

किसी की बरसों की पूरी हुई,
तलाश है तू.
किसी की दिल  की  ख्वाहिश,
आखिरी आस  है  तू.....

क्या तुझे ये एहसास  है  जाना ??

कोई  साँसे  लेता है  बस   इसीलिए,
की तेरी  खुसबू  लिए  कोई   झोका  गुजरे.
कोई  बैठा  रहता  है  राहों  में तेरी,
की तेरी  आहट  उसके  दिल तक   पहुचे.

कोई तनहा जी रहा है कहीं,
संजोए  तेरी  यादों को.
कोई हर रात  के  अँधेरे में,
जीता है तेरी ख्वाबों को.

कोई  इस  उम्मीद  में  है जी रहा,
तू  एक   दिन  आएगी उसकी बाँहों में.
खुदा भी हैरान   है  ये  देखकर,
की बस एक तू ही है उसकी दुआओं में.

तू अगर ना मिली उसे....
टूट कर  बिखर न जाए कहीं.
तुझे ये कैसे बताऊँ जाना ?
वो दीवाना कोई और नहीं......
वो दीवाना कोई और नहीं.....

Saturday, January 7, 2012

तुमसे बिछड़के.....




हमे ये एहसास है जाना,
तुझे हमसे मोहब्बत नहीं.
मत होना तू कभी खफ़ा,
ग़र मेरा साथ पसंद नहीं.
तेरे एक इशारे पे हम,
चले जायेंगे,
इस जहाँ से दूर कहीं.
पर वहां भी दुआ में,
खुदा से मांगेंगे यही.
दुनिया की हर ख़ुशी मिले तुझे,
कोई ग़म छू न पाए कभी.

तू बेशक भूल जाना मुझे,
याद रखना एक नाम मेरा.
की इसी नाम का कोई पागल,
जी रहा है कहीं,
हर लम्हा लेकर बस नाम तेरा.
ग़र कभी मुलाकात हुई मुझसे,
और बुरा लगे देख हाल मेरा.
मत फेर लेना नज़र अपनी,
की फिर जी न पायेगा,
ये दीवाना तेरा.

Tuesday, January 3, 2012

भ्रष्टाचार...



दिन  थे  वो संग्राम  के ,
जीवंत  तब  आवाम  थे .
एक   आवाज़  पर  महात्मा  के,
उठ  खड़े हुए,  सब  गुलाम  थे .

सत्य की गहरी नीव पे,
खड़ा  भारत   स्वाधीन  था .
फिर ये कैसा रोग लगा ?
बीमार खुद  हकीम  था .

स्वार्थ  की  ऐसी  धुंध  लगी ,
आशा की किरण  भी  न  दिख  रही .
दौलत  की  चाहत  न  पूछो तुम,
यहाँ ईमान तक  है  बिक  रही .

जब   मौका मिला तो जेबें भरी.
जिन्हें नहीं मिला, उनकी भोवें चढ़ी-

"की दुसरे सब भ्रष्ट हैं,
उन्हें सजा अब दिलानी है.
एक सरकार से लेकर दूजी तक,
चारा से लेकर 2G तक.
देश   अपना लुट रहा,
ये बात  सब  को बतानी है."

अरे चुप  रहो! न दिखावा करो,
भ्रष्टाचार क्या मिटाओगे.
कल  कल  कोई  पद  मिला,
तुम खुद दबा कर खाओगे.

कितनो से जाकर लड़ोगे तुम ?
जो खुद को  बस   सुधार लो,
ये देश है तुमसे ही बना.
इसे खुद-ब-खुद तब उबार लो.

लूट रहे जन्मभूमि को,
कैसे खोखले शक्श हो.
गैरत  ज़रा  भी बची है ग़र,
अरे अब तो माँ को बक्श दो.....
तुम अब तो माँ को बक्श दो.....