इतने दिनों बाद आज यूँही ,
राहों में उनसे मुलाकात हो गयी.
वही मासूम चेहरा, शरारती निगाहें,
उनकी यादों की जैसे बरसात हो गयी.
कदम रुके नही , की उनकी ओर चल पड़े ,
लब चुप रहे की मेरे होश खो गए.
उसने मुंह फेर लिया तब , रास्ते बदल लिए ,
यकीन नही होता की हम अजनबी हो गए.
हमने सोचा था ,
उसे भी अक्सर मेरी याद आती होगी ,
फिर मुझे सोच,
अकेले में वो भी मुस्कुराती होगी.
हम नादान थे जो इस दिल को ,
उनकी मोहब्बत के काबिल समझ बैठे.
जिसका वजूद न था उनकी नज़रों में ,
उस नाम को उनके अपनों में शामिल समझ बैठे.
कसूर उनका नहीं , हमारा है .
जो उनसे इतनी मोहब्बत की थी .
जलना तो किस्मत में थी ही मेरी ,
जब शम्मे की चाहत की थी .
बस इतनी शिकायत है उस रब से ,
की फिर से यूँ दिल दुखाया क्यूँ ?
जब मंजिलें अलग बनानी ही थी,
तो फिर रास्तों को यूँ मिलाया क्यूँ.......?
तो फिर रास्तों को यूँ मिलाया क्यूँ.......??
No comments:
Post a Comment