कहते हैं , "जो डरते हैं वो प्यार नही करते ",
पर मैं तो तुझसे इतनी मोहब्बत करता हूँ .
फिर क्यूँ है ऐसा की ,
हर पल , हर एक बात से मैं डरता हूँ .
डरता हूँ मैं तन्हाई से ,
की खुद को ढूँढू या तुझ को पाऊं .
डरता हूँ दुनिया की भीड़ से ,
कहीं बिन तेरे इसमें गुम न जाऊं .
डरता हूँ तुझसे दूर रहने से ,
की अब और तनहा मैं रह न पाऊँ .
डरता हूँ तेरे करीब आने से ,
कहीं जज्बातों के भवर में बह न जाऊं .
डरता हूँ तुझे छूने से ,
कहीं छुईमुई सी तू सिकुर न जाए.
डरता हूँ तुझे गले लगाने से ,
कहीं इन बाहों में तू बिखर न जाए .
डरता हूँ इस रात की चाँदनी से,
की ये तेरे ख्वाबों के संग ढल न जाए.
डरता हूँ सुबह की किरणों से ,
कहीं उजालों की चमक में तू बदल न जाए.
डरता हूँ मैं इज़हार करने से,
कहीं तुझे सदा के लिए खो न दूँ.
डरता हूँ चुप भी रहने से,
की फिर दिल की बातें किससे मैं कहूँ.
डरता हूँ मैं तेरी बातों से ,
की उनमे किसी ग़ैर का कभी जिक्र न हो.
डरता हूँ तेरी ख़ामोशी से ,
कहीं ऐसा तो नहीं तुझे मेरी फ़िक्र न हो.
और डर लगता है ये सोच कर हर पल ,
की क्या गर तुझे कभी पा न सकूँ.
उस खुदा से यही दुआ होगी मेरी ,
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