Sunday, November 18, 2012

एक_अधूरी_ मुलाकात।




तेरा  यूँ  मेरे  ख्यालों  में  आना।
दूर  से  ही  मुझे  देख  मुस्कुराना।
नज़रें  मिलने  पे  फिर  पलकें  झुकाना।
बड़ा  पसंद  आया  हमें,
ये  तेरा  मुझसे  मिलने  का  बहाना।

वो  तेरा  मासूम  सा  चेहरा,
निगाहों  को  कैद  कर  लेती  है।
हया  से  तेरे  होंठ  तब  जो  हिलते  हैं,
वो  मेरे  होश  उड़ा  देती  है।

तुझे  भी  शायद  कुछ  कहना  है  मुझसे,
न  जाने  क्यूँ  कहने  से  फिर  डरती  है।
तू  कितनी  भी  कोशिश  कर ले  छिपाने  की,
हमे  मालूम  है  तू  भी  मोहब्बत  करती  है।

फिर  अचानक  से  मुड़कर  तू  जाने  लगती  है,
मेरे  पुकारने  पर  वापस  ठहरती  है।
शरमाते  हुए  तब  पीछे  पलट कर,
दबे  पांव  से, सर झुकाए, मेरी ओर  बढती  है।

तेरे  हर  बढ़ते  कदम  के  साथ,
मेरी  धडकनें  बढ़ने  लगती  है।
मन  में  कई  ख्याल  कौंध  जाते  हैं,
तू  इस  कदर  मेरे  पास  आती है

मैं तुझे  छूने  को  हाथ  बढ़ता  हूँ,
की तभी , पता  नही क्यूँ,
ये  नींद  खुल  जाती  है।
और  ये  मुलाकात ,
फिर  अधूरी  ही  रह  जाती  है।


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