तन्हा जी रहा था मैं,
फिर तुने साथ चलना सिखाया.
तेरी प्यारी आँखों ने,
एक हसीं ख्वाब दिखाया.
हर हँसी में तेरी,
मैंने थी ज़िन्दगी पायी.
मोहब्बत हुई थी मुझे,
तू दिल को इस कदर भायी.
पर तेरे दिल में भी मोहब्बत,
मैं कभी जगा न सका.
तुने साथ छोड़ा भी तब,
जब राह में आख़िरी मोर आया.
मैं आज भी वहीँ खड़ा,
तेरे आने की उम्मीद में हूँ.
अकेला था तो मैं पहले भी,
अब तन्हा भीड़ में हूँ.
छोड़ना ही था अगर तो,
हाथ मेरा थामा क्यूँ ?
मैं जी रहा था कहीं तन्हा,
यूँ ज़िन्दगी में आना क्यूँ ?
बहुत कुछ है कहने को इस दिल में,
पर क्या, गर तुझे ऐतबार नहीं.
रातों को सिसकती साँसों का क्या,
गर सिरहाने मेरा यार नहीं.
हँसता है अब तो मेरी तन्हाई पे,
ये चाँद घिरा सितारों में.
बिखरा हूँ मैं लहरों की तरह,
टूटा हूँ पहुँच किनारों पे.
तुझे चाहने की जुर्रत की तो,
खुदा से ये कैसी सजा पायी.
किसी से क्या गिला करूँ मैं,
साथ छोड़ गयी जब खुद की भी परछाई.
तेरी वो मासूम सी बातें,
गूंजती हैं मेरे कानो में.
तेरी खुसबू सी आती है,
मेरे हर साँसों में.
होश नहीं अब मुझे खुद का,
खोया रहता हूँ तेरी यादों में.
तेरी खुसबू सी आती है,
मेरे हर साँसों में.
होश नहीं अब मुझे खुद का,
खोया रहता हूँ तेरी यादों में.
तन्हा जी रहा हूँ इसी उम्मीद में अब,
तू भी बेचैन हो आएगी मेरे बाँहों में.
No comments:
Post a Comment