वो पेहली मुलाकात अपनी.
पलकों से मिली थी पलकें,
दिल ही दिल में हुई थी बात अपनी.
उससे पहले तू,
मिला करती थी बस ख्वाबों में.
अब तो हर पल है ,
एक तू ही मेरे ख्यालों में.
मैं सोचता था,
तू परियों की शहज़ादी है.
जो कहीं दूर,
परिस्तान से आती है.
पर तुझसे मिल कर,
मुझे हुआ ये यकीं.
कोई हो सकता है,
इस ज़मी पे इतना भी हसीं.
मेरी ग़ज़ल,
मेरी उम्मीद है तू,
हर वक़्त इस दिल के,
करीब है तू.
तेरी निगाहों में छुपी,
ये कैसी शरारत है .
मैं नादाँ, नही समझता उनको,
क्या उनमे भी मेरी चाहत है ?
सारी दुनियां से चुराकर,
आ तुझे पलकों में छिपा लू.
हर मुस्कराहट में तेरी,
मैं अपनी ज़िन्दगी पा लू.
न कहना की तुझे ऐतबार नहीं ,
की मैं तुझ पे फना हो जाऊं.
मेरे रूह की बस एक ख्वाहिश है,
तुझमे ही सदा के लिए खो जाऊं.
No comments:
Post a Comment