Thursday, February 17, 2011

बेवफा सनम...



उसके इश्क ने हमे जीना सिखाया,
हमने उसे खुद से भी ज्यादा प्यार किया.
ए खुदा मुझे माफ़ करना,
मैंने एक पत्थर दिल पे तुझ से ज्यादा ऐतबार किया.

कभी खायी थी उसने कसम,
की वो रहेगी सदा मेरी पनाहों में.
मेरे दिल के ज़ख्म अभी भरे भी नही,
और बेवफा खुश है किसी गैर के बाँहों में.

सब कहते है उसे किसी और से मोहब्बत है,
वो किसी और की अमानत है.
इस टूटे दिल को कोई समझा दे ये,
इसमें तो आज भी उसी की चाहत है.

उस बेवफा की मोहब्बत में,
हम दर्द का ज़हर निगलते गए.
वो शम्मा हमे जलाती रही,
और हम मोम से पिघलते गए.

मेरे दिल के साथ खेलने के बाद,
अब उसे मेरे प्यार से इनकार है.
कहते हैं इस दर्द-ए-दिल का कोई इलाज़ नही,
अब तो बस मौत का इंतज़ार है.

उससे पहले कुछ सवाल है मेरे उस बेरहम से,
मेरी मोहब्बत का यही सिला दिया तुने.
ऐसे ज़ख्म दिए हैं इस दिल पे,
जो कभी ना भर पाएंगे कोई मरहम से.

एक आखरी आरजू थी बेदर्द सनम से,
अपने दुपट्टे का एक टुकड़ा दे देना मुझे,
मैं मर सकूँगा चैन से..........अगर,
तेरी खुशबू आएगी मेरे कफ़न से.

No comments:

Post a Comment