मासूम चेहरा, शरारती निगाहें,
होंठों पे हँसी और कातिल अदा है।
लाखों हैं आशिक उसके यहाँ पे,
सूरत पे उसके ये चाँद तक फ़िदा है।
एक अज़ब सा नूर है उसके चेहरे पे यारों,
सुबह की किरने भी रौशन उन्ही से।
पलक जो झुका दे एक पल को हया से,
आसमां में ये बादल लगते बरसने।
हवा भी मचलकर बदल दे रुख अपना,
लहराती - उछलती चले वो जिधर को।
खिले न कलियाँ बागों में उस दिन,
जो कभी दिल नाराज़ उसका अगर हो।
एक झलक उस परी की, पाने की खातिर,
राहों में कितने ही मजनू पड़े हैं।
रेहेम हो खुदा का, जो देखे एक नज़र वो,
उसी भीड़ में तनहा हम भी खड़े हैं।
मोहब्बत है उससे, हमे हद से ज्यादा,
मगर ये उसे हम बताएँ तो कैसे ?
मैं रात का अँधेरा, सुहानी सुबह वो,
मिलना हमारा हो मुमकिन तो कैसे ?
रौशन हों हम भी, अगर साथ दे वो,
एक छोटा सा आशियाँ मिलकर बनाते।
प्यार भरे लम्हों से ख्वाबों को बुनकर,
खुशियों की छांव में, यादों से सजाते।
ऐसा एक जहाँ हम अपना बनाते।