तेरी बातों से, मुस्कुराहटों से,
मासूमियत से, ज़ज्बातों से ।
मैं मोहब्बत करता रहा,
तू मुझे एक दोस्त समझती रही,
और मैं कहने से डरता रहा ।
तू जा रही थी मुझसे दूर कहीं,
तनहा मैं खड़ा रहा वहीँ ।
तुझे रोकना तो चाहता था मगर,
तूने एक बार भी मुड़कर देखा ही नहीं ।
गिला इस बात से नहीं,
की तू मुझसे जुदा हो गयी ।
गिला तो इस बात का रहा,
तू मुझे समझ न सकी ।
तूने कह तो दिया- भूल जाना मुझे,
नहीं तेरा कोई वास्ता मुझसे ।
तू ही बता दे मैं किधर जाऊं,
मेरी तो मंजिल भी तू ,
और रास्ता भी तुझसे ।
मैं तेरे काबिल नहीं तो ना सही,
पर यूँ न मुह फेर लेना कभी ।
दुनिया के दिए हर ग़म तो सह लूं मगर,
तेरी बेरुखी ना ले ले कहीं जान मेरी ।
खुदा से कुबूल हुई पहली दुआ थी तू,
पाकर जिसे हर ग़म भुलाना था ।
मैं बदनसीब यकीन कर बैठा,
ज़िन्दगी को तो हर पल मुझे रुलाना था ।
कुछ पल के लिए ही सही,
तू आयी थी ज़िन्दगी में मेरी ।
उन्ही पलों को ख्वाबों में सजाकर,
जी लेंगे अब बंदगी में तेरी ।
चंद क़दमों का सफ़र था हमारा,
पर लगा जैसे बरसों का साथ हो ।
ऐ खुदा ! अगर दुबारा ज़िन्दगी दे मुझे,
तो उसके ही हाथों में मेरा हाथ हो ।
तब इतनी मोहब्बत हो जाए उसे मुझसे,
की मोहब्बत के सिवा न कोई ज़ज्बात हो ।
हर दिन रौशन हो उसके ही नूर से,
और उसकी बाहों में ही मेरी हर रात हो ।
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