Sunday, October 16, 2011

एक तू ही....



तुझे याद है या नहीं ?
वो पेहली  मुलाकात   अपनी.
पलकों से मिली थी पलकें,
दिल ही दिल में हुई थी बात अपनी.

उससे पहले तू,
मिला करती थी  बस   ख्वाबों में.
अब तो हर पल  है ,
एक तू ही मेरे ख्यालों में.

मैं सोचता था,
तू परियों की शहज़ादी है.
जो कहीं दूर, 
परिस्तान  से  आती  है.

पर तुझसे मिल कर,
मुझे हुआ  ये  यकीं.
कोई हो सकता है,
इस   ज़मी पे इतना भी हसीं.

मेरी ग़ज़ल,
मेरी उम्मीद है तू,
हर वक़्त इस दिल के,
करीब है तू.

तेरी निगाहों में छुपी,
ये कैसी शरारत  है .
मैं नादाँ, नही समझता उनको, 
क्या उनमे भी मेरी चाहत  है ?

सारी दुनियां से चुराकर,
आ  तुझे  पलकों में छिपा लू.
हर मुस्कराहट में तेरी,
मैं अपनी ज़िन्दगी पा लू.

न   कहना  की  तुझे  ऐतबार  नहीं ,
की  मैं  तुझ पे  फना  हो  जाऊं.
मेरे  रूह  की  बस  एक ख्वाहिश है,
तुझमे ही सदा के लिए खो जाऊं.

Sunday, October 9, 2011

आवारा आशिक....



दशेहरे का एक  किस्सा सुनाता हूँ,
गया था मैं एक मेले पर
खूबसूरत  एक   बंदी खड़ी थी वहीँ,
चटपटी सी, तीखी सी, चाट के ठेले पर.

उस हसीं की अदाओं पे,
हो गया मैं  इस   कदर  फ़िदा .
कदम   चल  पड़े  उसकी ओर,
मदद  करना  अब   ए  खुदा.

जब   देखा की कोई नही था उसके साथ,
जाकर खड़ा हो गया उसके बाजु.
बोला- "may i know ur sweet name ?
by the way my name is raju".

सुनकर वो थोडा ताव  में  आई,
तिरछी नज़रों से मुझे देखा.
मेरे व्यक्तित्व का विश्लेषण  कर ,
वो थोड़ा सोचकर बोली- "Rekha".

कोयल  सी  मीठी उसकी आवाज़,
कानो में मधुर  रस   घोल  गयी .
उसने कहा तो बस  एक  शब्द मगर,
उसकी आँखें बहुत  कुछ   बोल  गयी .

मैं शायद  कुछ  ज्यादा सोच  बैठा ,
फिर सकुचाकर पूछा- "are u single ?"
ये सुनकर वो थोड़ा मुस्कुरायी,
फिर तुनक कर बोली- "sorry i don't want to mingle."

खैर, उससे पहले वो मुस्कुरायी तो थी,
और   फिर सब कहते हैं "हंसी तो फँसी."
मैंने सोचा आखिर किस्मत  चमकी ,
इतनी कोशिशों के बाद एक बंदी पटी.

कल्पनाओं की दुनिया में खोया,
मैं बड़े प्यार से बोला- "i love you."
वो गुस्से में बोली-"चुप चाप  निकल  ले ,
नहीं तो my bhaiya will kill you."

मैंने भी जोश  में  उसका  हाथ   पकड़ा,
बोला-"don't worry, i'll handle your bhai."
उसने झटक कर हाथ छुराया,
और जोर से एक थप्पर लगाई.

उसकी छुअन  से  बदन  में  बिजली दौर गयी,
मैंने पूछा-"हाथ में चोट तो नही आई ?"
बड़े कमीने और बेशर्म  हो  तुम, 
ऐसा कहकर वो "भाई-भाई" चिल्लाई.

आगे क्या बताऊँ यारों,
आशिकी की क्या सजा पायी.
वो पत्थर  दिल   हंसती रही मुझ  पर ,
उसके भाई ने ऐसी की मेरी पिटाई.

दर्द से कराहते मेरे दिल ने तब,
अपने टूटे हाथ की  कसम   खायी.
अब किसी बंदी के  पास   नहीं जाना,
जिसका आसपास हो कोई भाई........   :-(

खैर.........
अगली बार से ये ध्यान  में  रख कर ही,
मरूँगा किसी दूसरी बंदी पे TRY..... ;-) :P