Saturday, September 29, 2012

यूँही_राहों_में.......





इतने  दिनों  बाद  आज  यूँही ,
राहों  में  उनसे  मुलाकात  हो  गयी.
वही  मासूम  चेहरा,  शरारती  निगाहें,
उनकी  यादों  की  जैसे  बरसात  हो  गयी.


कदम  रुके  नही , की  उनकी  ओर  चल  पड़े ,
लब  चुप  रहे  की  मेरे  होश  खो  गए.
उसने  मुंह   फेर  लिया  तब , रास्ते  बदल  लिए ,
यकीन  नही  होता  की  हम  अजनबी  हो  गए.

हमने  सोचा  था ,
उसे  भी  अक्सर  मेरी  याद  आती  होगी ,
फिर  मुझे  सोच,
अकेले  में  वो  भी  मुस्कुराती  होगी.

हम  नादान  थे  जो  इस  दिल  को , 
उनकी  मोहब्बत  के  काबिल  समझ  बैठे.
जिसका  वजूद  न  था  उनकी  नज़रों  में ,
उस  नाम  को  उनके  अपनों  में  शामिल  समझ  बैठे.

कसूर  उनका  नहीं , हमारा  है .
जो  उनसे  इतनी  मोहब्बत  की  थी .  
जलना  तो  किस्मत  में  थी  ही  मेरी ,
जब  शम्मे  की  चाहत  की  थी .

बस  इतनी  शिकायत  है  उस  रब  से ,
की  फिर  से  यूँ  दिल  दुखाया  क्यूँ  ?
जब  मंजिलें  अलग  बनानी  ही  थी,
तो  फिर  रास्तों  को  यूँ  मिलाया  क्यूँ.......?

तो  फिर  रास्तों  को  यूँ  मिलाया  क्यूँ.......??