सोचता हूँ कभी-कभी,
क्या मिला इस जहाँ से ?
भटक चुका बहुत मैं,
अब किधर जाऊं यहाँ से ?
कैसी उलझन में फंसा है मन,
कदम बढ़ने से हिचकता हूँ.
दुनिया हँसेगी मेरे आंसुओं पे,
इसलिए मन ही मन सिसकता हूँ.
निराशा के भवर में घिरा,
तनहा सफ़र पे मैं चलता रहा.
मंजिल के करीब पहुचकर भी,
गिरता रहा, संभलता रहा.
हर ख्वाब इन आँखों से,
अश्कों के संग बहते गए.
"जो होता है, अच्छे के लिए होता है."
यही सोच सब सहते गए.
उजालों से दुश्मनी नहीं थी मेरी,
पर अब अंधेरों से दोस्ती की है.
मुझे नादान न समझना यारों,
मैंने भी थोड़ी ज़िन्दगी जी है.
मैंने भी थोड़ी ज़िन्दगी जी है.....