Sunday, May 6, 2012

निराशा



सोचता हूँ कभी-कभी,
क्या मिला इस जहाँ से ?
भटक चुका बहुत मैं,
अब किधर जाऊं यहाँ से ?

कैसी उलझन में फंसा है मन,
कदम बढ़ने से हिचकता हूँ.
दुनिया हँसेगी मेरे आंसुओं पे,
इसलिए मन ही मन सिसकता हूँ.

निराशा के भवर में घिरा,
तनहा सफ़र पे मैं चलता रहा.
मंजिल के करीब पहुचकर भी,
गिरता रहा, संभलता रहा.

हर ख्वाब इन आँखों से,
अश्कों के संग बहते गए.
"जो होता है, अच्छे के लिए होता है."
यही सोच सब सहते गए.

उजालों से दुश्मनी नहीं थी मेरी,
पर अब अंधेरों से दोस्ती की है.
मुझे नादान न समझना यारों,
मैंने भी थोड़ी ज़िन्दगी जी है.

मैंने भी थोड़ी ज़िन्दगी जी है.....

Wednesday, May 2, 2012

कशिश_दिल_की.....


कुछ   ख्वाब  हैं  मेरे पलकों पे सजे,
तुझे अपने  ख्वाब  दिखाऊँ  कैसे?
लब   खुलते नही तेरे आगे,
आँखों से दिल की  बात   बताऊँ  कैसे?

मैं नादाँ, मुझे आशिकी नही आती,
तुझ पर अपनी मोहब्बत  जताऊँ  कैसे?
इज़हार करू पर डरता हु तुझे खोने से,
मैं दिल की बात जुबां पे लाऊं कैसे?

यादें तेरी तड़पाती है मुझे तन्हाई  में ,
मैं अपने अश्क सब  से  छुपाऊँ कैसे?
मेरे हाल  पे  कई   सवाल  हैं  उठे,
तेरे  साथ   बिना सबको समझाऊँ कैसे?

डर लगता है तेरी ख़ामोशी से,
यूँ इंतज़ार में जीए जाऊं कैसे?
इंसा नही, खुदा है तू मेरे लिए,
फिर तुझे दिल से भुलाऊँ कैसे?