Tuesday, January 10, 2012

तुझे कैसे बताऊँ जाना.....



क्या तुझे पता है जाना ??

कोई है जिसे जान  से  ज्यादा,
मोहब्बत  है  तुझसे.
कोई है जिसे बेपनाह,
चाहत  है  तुझसे.

किसी की ज़रूरत  है  तू.
किसी की ज़िन्दगी है तुझसे.
कोई रोता है तन्हाई में,
किसी की हर ख़ुशी है तुझसे.

किसी की बरसों की पूरी हुई,
तलाश है तू.
किसी की दिल  की  ख्वाहिश,
आखिरी आस  है  तू.....

क्या तुझे ये एहसास  है  जाना ??

कोई  साँसे  लेता है  बस   इसीलिए,
की तेरी  खुसबू  लिए  कोई   झोका  गुजरे.
कोई  बैठा  रहता  है  राहों  में तेरी,
की तेरी  आहट  उसके  दिल तक   पहुचे.

कोई तनहा जी रहा है कहीं,
संजोए  तेरी  यादों को.
कोई हर रात  के  अँधेरे में,
जीता है तेरी ख्वाबों को.

कोई  इस  उम्मीद  में  है जी रहा,
तू  एक   दिन  आएगी उसकी बाँहों में.
खुदा भी हैरान   है  ये  देखकर,
की बस एक तू ही है उसकी दुआओं में.

तू अगर ना मिली उसे....
टूट कर  बिखर न जाए कहीं.
तुझे ये कैसे बताऊँ जाना ?
वो दीवाना कोई और नहीं......
वो दीवाना कोई और नहीं.....

Saturday, January 7, 2012

तुमसे बिछड़के.....




हमे ये एहसास है जाना,
तुझे हमसे मोहब्बत नहीं.
मत होना तू कभी खफ़ा,
ग़र मेरा साथ पसंद नहीं.
तेरे एक इशारे पे हम,
चले जायेंगे,
इस जहाँ से दूर कहीं.
पर वहां भी दुआ में,
खुदा से मांगेंगे यही.
दुनिया की हर ख़ुशी मिले तुझे,
कोई ग़म छू न पाए कभी.

तू बेशक भूल जाना मुझे,
याद रखना एक नाम मेरा.
की इसी नाम का कोई पागल,
जी रहा है कहीं,
हर लम्हा लेकर बस नाम तेरा.
ग़र कभी मुलाकात हुई मुझसे,
और बुरा लगे देख हाल मेरा.
मत फेर लेना नज़र अपनी,
की फिर जी न पायेगा,
ये दीवाना तेरा.

Tuesday, January 3, 2012

भ्रष्टाचार...



दिन  थे  वो संग्राम  के ,
जीवंत  तब  आवाम  थे .
एक   आवाज़  पर  महात्मा  के,
उठ  खड़े हुए,  सब  गुलाम  थे .

सत्य की गहरी नीव पे,
खड़ा  भारत   स्वाधीन  था .
फिर ये कैसा रोग लगा ?
बीमार खुद  हकीम  था .

स्वार्थ  की  ऐसी  धुंध  लगी ,
आशा की किरण  भी  न  दिख  रही .
दौलत  की  चाहत  न  पूछो तुम,
यहाँ ईमान तक  है  बिक  रही .

जब   मौका मिला तो जेबें भरी.
जिन्हें नहीं मिला, उनकी भोवें चढ़ी-

"की दुसरे सब भ्रष्ट हैं,
उन्हें सजा अब दिलानी है.
एक सरकार से लेकर दूजी तक,
चारा से लेकर 2G तक.
देश   अपना लुट रहा,
ये बात  सब  को बतानी है."

अरे चुप  रहो! न दिखावा करो,
भ्रष्टाचार क्या मिटाओगे.
कल  कल  कोई  पद  मिला,
तुम खुद दबा कर खाओगे.

कितनो से जाकर लड़ोगे तुम ?
जो खुद को  बस   सुधार लो,
ये देश है तुमसे ही बना.
इसे खुद-ब-खुद तब उबार लो.

लूट रहे जन्मभूमि को,
कैसे खोखले शक्श हो.
गैरत  ज़रा  भी बची है ग़र,
अरे अब तो माँ को बक्श दो.....
तुम अब तो माँ को बक्श दो.....